सोमवार, 4 जनवरी 2016

जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गए - महावीर शर्मा

जब वतन छोड़ा, सभी अपने पराए हो गये। 
आंधी कुछ ऐसी चली नक़्शे क़दम भी खो गये।

खो गई वो सौंधी-सौंधी देश की मिट्टी कहाँ? 
वो शबे-महताब दरिया के किनारे खो गये।

बचपना भी याद है जब माँ सुलाती प्यार से
आज सपनों में उसी की गोद में ही सो गये।

दोस्त लड़ते थे कभी तो फिर मनाते प्यार से
आज क्यों उन के बिना ये चश्म पुरनम हो गये!

किस क़दर तारीक है दुनिया मेरी उन के बिना
दर्द फ़ुरक़त का लिए अब दिल ही दिल में रो गये।

था वो प्यारा-सा घरौंदा, ताज से कुछ कम नहीं 
गिरती दीवारों में यादों के ख़ज़ाने खो गये

हर तरफ़ ही शोर है, ये महफ़िले-शेरो-सुखन
अजनबी इस भीड़ में फिर भी अकेले हो गये

प्रेम ही सत्यम, प्रेम शिवम है, प्रेम ही सुंदरतम होगा - महावीर शर्मा

प्रेम ही सत्यम, प्रेम शिवम है, प्रेम ही सुंदरतम होगा
प्रेम डगर पर चलते रहना जहाँ न लुटने का ग़म होगा।

मदमाती पलकों की छाया, मिल जाए यदि तनिक पथिक को
तिमिर, शूल से भरा मार्ग भी आलोकित आनन्द-सम होगा।

डगर प्रेम की, आस प्रणय की, उद्वेलित हों भाव हृदय के
अंतर-ज्योति की लौ में जल कर नष्ट निराशा का तम होगा।

बिछड़ गया क्यों साथ प्रिय का, सिहर उठा पौरुष अंतर का
जीर्ण वेदना रही सिसकती, प्यार में न कोई बंधन होगा।

अकथ कहानी सजल नयन में लिए सोचता पथिक राह में
दूर क्षितिज के पार कहीं पर, एक अनोखा संगम होगा।

निशा विरह को निगल जाएगी, भोर लिए संदेश मिलन का
उत्तंग तरंगों पर किरणों का, झूम-झूम कर नर्तन होगा।

भूखे किसान - महावीर शर्मा

मुश्‍किल भूखों का जीना है  !! 
      मेहनत करके निज हाथों से , बेचारे खेत उगाते हैं , 
      सारे दिन खून बहा अपना , सूरज ढलने पर आते हैं , 
      वर्तमान के कष्‍टों को , मुस्‍का मुस्‍का कर सहते हैं , 
      केवल भावी की आशा में , दो दो दिन भूखे रहते हैं , 
      पकने पर फ़सल बना सोना , उनका बहुमूल्‍य पसीना है । 

      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !!

       
      खलिहानों में निज फ़सल देख वह खड़ा खड़ा मुस्‍काता है , 
      सूदख़ोर गाड़ी में भर कर , फ़सल साथ ले जाता है , 
      यूं ही सूरज चला गया , पूनम का चांद निकल आया , 
      उसे लगा यह चांद नहीं , कोई गोल गोल रोटी लाया , 
      एक काले बादल ने आकर , उस रोटी को भी छीना है । 

      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !! 

      पीते हैं कुत्ते दूध कहीं , पर वह भूखा चिल्‍लाता है , 
      ऊंचे महलों के नीचे वह , कुटिया में रात बिताता है , 
      भूखा रहने के कारण उसकी , आंख नहीं लग पाती है , 
      यदि आंख लगे तो सपने में , बिल्‍ली रोटी ले जाती है , 
      इस डर से सोता नहीं रात भर , केवल आंसू पीना है । 

       
      मुश्‍किल भूखों का जीना है  !!

ज़िन्दगी में प्यार का वादा निभाया ही कहाँ है - महावीर शर्मा

ज़िन्दगी में प्यार का वादा निभाया ही कहाँ है
नाम लेकर प्यार से मुझ को बुलाया ही कहाँ है ?

टूट कर मेरा बिखरना, दर्द की हद से गुज़रना
दिल के आईने में ये मंज़र दिखाया ही कहाँ है ?

शीशा-ए-दिल तोड़ना है तेरे संगे-आस्ताँ पर
तेरे दामन पे लहू दिल का गिराया ही कहाँ है ?

ख़त लिखे थे ख़ून से जो आँसुओं से मिट गये अब
जो लिखा दिल के सफ़े पर, वो मिटाया ही कहाँ है ?

जो बनाई है तेरे काजल से तस्वीरे-मुहब्बत
पर अभी तो प्यार के रंग से सजाया ही कहाँ है ?

देखता है वो मुझे, पर दुश्मनों की ही नज़र से
दुश्मनी में भी मगर दिल से भुलाया ही कहाँ है ?

ग़ैर की बाहें गले में, उफ़ न थी मेरी ज़ुबाँ पर
संग दिल तूने अभी तो आज़माया ही कहाँ है ?

जाम टूटेंगे अभी तो, सर कटेंगे सैंकड़ों ही
उसके चेहरे से अभी पर्दा हटाया ही कहाँ है ?

उन के आने की ख़ुशी में दिल की धड़कन थम न जाये
रुक ज़रा, उनका अभी पैग़ाम आया ही कहाँ है ?

याद जब आई कभी, आंसू निकल कर बह गये - महावीर शर्मा

याद जब आई कभी, आंसू निकल कर बह गये 
क्या कहें इस दिल की हालत, शिद्दते-ग़म सह गए

गुफ़्तगू में फूल झड़ते थे किसी के होंट से
याद उनकी ख़ार बन, दिल में चुभो के रह गए

जब मिले मुझ से कभी, इक अजनबी की ही तरह
पर निगाहों से मिरे दिल की कहानी कह गये।

प्यार के थे कुछ लम्हे, यादों के नग़मे बन गए
वो ही नग़मे साज़े-ग़म पर गुनगुना कर रह गए

दो क़दम ही दूर थे, मंज़िल को जाने क्या हुआ
फ़ासले बढ़ते गये, नक्शे-क़दम ही रह गए

दिल के आईने में उसका, सिर्फ़ उसका अक्स था
शीशा-ए-दिल तोड़ डाला, ये सितम भी सह गए

ख़्वाब में दीदार हो जाता तेरी तस्वीर का
नींद भी आती नहीं, ख़्वाबी-महल भी ढह गये

सर्दी आई - मदनगोपाल शर्मा

ठिठुरन कंपन
अकड़ दिखाती
ठंड पड़ रही भारी,
सूरज भैया छिपकर बैठे
शायद भूले पारी।
मुनिया डर कर नहीं नहाई,
बीती बरखा सर्दी आई!

चुनमुन चिड़िया
आज न निकली
लगा रात है बाकी,
धुंध बहुत है
कुहरा छाया
काँपें बूढ़ी काकी,
बैठी रहती ओढ़ रजाई!

सच में मौसम
तनिक न अच्छा
परेशान हैं सारे,
किसी काम में
मन न लगता
बैठे हैं मन मारे,
काम चलेगा कैसे भाई?