रविवार, 13 दिसंबर 2015

नाव बनाओ - हरिकृष्णदास गुप्त 'हरि'


नाव बनाओ, नाव बनाओ,
भैया मेरे जल्दी आओ।

वह देखो पानी आया है,
घिर-घिरकर बादल छाया है,
सात समंदर भर लाया है,
तुम रस का सागर भर लाओ।

पानी सचमुच खूब पड़ेगा,
लंबी-चौड़ी गली भरेगा,
लाकर घर में नदी धरेगा,
ऐसे में तुम भी लहरओ।

ले आओ कागज़ चमकीला,
लाल-हरा या नीला-पीला,
रंग-बिरंगा खूब रंगीला,
कैंची, चुटकी हाथ चलाओ।

नाव बनाकर बढ़िया-बढ़िया,
बैठाओ फिर गुड्डे-गुड़िया,
चप्पू थामे नानी बुढ़िया,
बहती गंगा चाल दिखाओ!

नाव बनाओ, नाव बनाओ,
भैया मेरे जल्दी आओ।

बुढ़िया गुड़िया - हरिकृष्णदास गुप्त 'हरि

गुड़िया मेरी-मेरी गुड़िया,
गुड़िया है, बस बिल्कुल बुढ़िया!

दाँत बत्तीसों उसके टूटे,
बोले, थूक फुहारा छूटे।
सिर है बस बालों का बंडल,
यों समझो, सन का है जंगल।
गुड़िया मेरी, मेरी गुड़िया!
बुढ़िया है, बस बिल्कुल बुढ़िया!

चुँधी-चुँधी आँखें है रखती,
कुछ का कुछ उनसे है लखती।
कानों से भी कम सुनती है,
अटकल-पच्चू ही गुनती है।
गुड़िया मेरी, मेरी गुड़िया,
बुढ़िया है, बस बिल्कुल बुढ़िया!

झुक-झुक दुहरी हुई कमर है,
गरदन कँपती थर-थर-थर है।
चलती है वह लाठी लेके,
बस, दस-बीस कदम ले-दे के।
गुड़िया मेरी, मेरी गुड़िया
बुढ़िया है, बस बिल्कुल बुढ़िया!

काम न अब उससे है होता,
ले ली माला, छूटा सरौंता।
पर है जीभ अभी तक चली,
फर-फर काट सभी की करती।
गुड़िया मेरी, मेरी गुड़िया,
बुढ़िया है, बस बिल्कुल बुढ़िया।

हुई निकम्मी सब हैं कहते,
दूर-दूर खूसट कह रहते।
पर खूसट मुझको तो प्यारी,
सूझ-बूझ में जग से न्यारी।
गुड़िया मेरी, मेरी गुड़िया,
बुढ़िया है, बस बिल्कुल बुढ़िया!

क्या करेगी चांदनी - हुल्लड़ मुरादाबादी

चांद औरों पर मरेगा क्या करेगी चांदनी
प्यार में पंगा करेगा क्या करेगी चांदनी

चांद से हैं खूबसूरत भूख में दो रोटियाँ
कोई बच्चा जब मरेगा क्या करेगी चांदनी

डिग्रियाँ हैं बैग में पर जेब में पैसे नहीं
नौजवाँ फ़ाँके करेगा क्या करेगी चांदनी

जो बचा था खून वो तो सब सियासत पी गई
खुदकुशी खटमल करेगा क्या करेगी चांदनी

दे रहे चालीस चैनल नंगई आकाश में
चाँद इसमें क्या करेगा क्या करेगी चांदनी

साँड है पंचायती ये मत कहो नेता इसे
देश को पूरा चरेगा क्या करेगी चांदनी

एक बुलबुल कर रही है आशिक़ी सय्याद से
शर्म से माली मरेगा क्या करेगी चांदनी

लाख तुम फ़सलें उगा लो एकता की देश में
इसको जब नेता चरेगा क्या करेगी चांदनी

ईश्वर ने सब दिया पर आज का ये आदमी
शुक्रिया तक ना करेगा क्या करेगी चांदनी

गौर से देखा तो पाया प्रेमिका के मूँछ थी
अब ये "हुल्लड़" क्या करेगा, क्या करेगी चांदनी

साल आया है नया - हुल्लड़ मुरादाबादी

यार तू दाढ़ी बढ़ा ले, साल आया है नया 
नाई के पैसे बचा ले, साल आया है नया 

तेल कंघा पाउडर के खर्च कम हो जाएँगे 
आज ही सर को घुटा ले, साल आया है नया 

चाहता है हसीनों से तू अगर नजदीकियाँ
चाट का ठेला लगा ले, साल आया है नया 

जो पुरानी चप्पलें हैं उन्हें मंदिरों पर छोड़ कर
कुछ नए जूते उठा ले, साल आया है नया 

मैं अठन्नी दे रहा था तो भिखारी ने कहा
तू यहीं चादर बिछा ले, साल आया है नया

दो महीने बर्फ़ गिरने के बहाने चल गए
आज तो हुल्लड़ नहा ले, साल आया है नया

भूल जा शिकवे, शिकायत, ज़ख्म पिछले साल के 
साथ मेरे मुस्कुरा ले, साल आया है नया

दौड़ में यश और धन की जब पसीना आए तो 
'सब्र' साबुन से नहा ले, साल आया है नया

मौत से तेरी मिलेगी, फैमिली को फ़ायदा
आज ही बीमा करा ले, साल आया है नया

दोहे - हुल्लड़ मुरादाबादी

कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,
महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए।

बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,
पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय।

गुरु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,
तभी पुलिस ने गुरु के, पांव दिए तुड़वाय।

पूर्ण सफलता के लिए, दो चीज़ें रखो याद,
मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद।

नेता को कहता गधा, शरम न तुझको आए,
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाए।

बूढ़ा बोला, वीर रस, मुझसे पढ़ा न जाए,
कहीं दांत का सैट ही, नीचे न गिर जाए।

हुल्लड़ खैनी खाइए, इससे खांसी होय,
फिर उस घर में रात को, चोर घुसे न कोय।

हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय,
लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर न होय।

बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय,
किसी भी हालत में तेरा, बाल न बांका होय।

दोहों को स्वीकारिये, या दीजे ठुकराय,
जैसे मुझसे बन पड़े, मैंने दिए बनाय।

नाजायज बच्चे - हुल्लड़ मुरादाबादी

परेशान पिता ने
जनता के अस्पताल में फोन किया
“डाक्टर साहब
मेरा पूरा परिवार बीमार हो गया है

बड़े बेटे आंदोलन को बुखार
प्रदर्शन को निमोनिया
तथा
घेराव को कैंसर हो गया है
सबसे छोटा बेटा ‘बंद’
हर तीन घंटे बाद उल्टियाँ कर रहा है

मेरा भतीजा हड़ताल सिंह
हार्ट अटैक से मर रहा है
डाक्टर साहब, प्लीज जल्दी आइए
प्यारी बिटिया ‘सांप्रदायिकता’ बेहोश पड़ी है
उसे बचाइए।”

डाक्टर बोला, “आई एम सौरी
मैं सिद्धांतवादी आदमी हूँ
नाजायज बच्चों का इलाज नहीं करता हूँ।”

क्या बताएँ आपसे - हुल्लड़ मुरादाबादी

क्या बताएँ आपसे हम हाथ मलते रह गए
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए

भूख, महगाई, गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे
रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए
कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे
और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे
हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े
चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े

रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे
एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे
कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते
सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते
अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है
हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है