सोमवार, 9 नवंबर 2015

आर्य-भूमि - महावीर प्रसाद द्विवेदी

1जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान,
रामादि राजा अति कीर्तिमान। 
जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि ।।

2जहाँ हुए साधु हा महान् 
थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्। 
जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

3 जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी, 
स्वदेश का भी अभिमान भारी ।
जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि, 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

4हुए प्रजापाल नरेश नाना,
प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना ।
जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

5वीरांगना भारत-भामिली थीं,
वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं ।
जो थी जगत्पूजित वीर- भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

6स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष, 
हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष ।
जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि, 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। 

7 स्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान,
जहाँ हुए यत्न सदा महान।
जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। 

8न स्वार्थ का लेन जरा कहीं था,
देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था।
जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि, 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। 

9कोई कभी धीर न छोड़ता था,
न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था।
जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि, 
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। 
10स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने,
जहाँ सभी ने शर-चाप ताने ।
जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।। 

11अनेक थे वर्ण तथापि सारे
थे एकताबद्ध जहाँ हमारे 
जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि, 
वही हमारी यह आर्य भूमि ।।

12थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी, 
जहाँ हुए शुर यशोधिकारी ।
जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि,
वही हमारी यह आर्यभूमि ।। 

13दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान, 
छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान । 
जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि, 
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।

14नए नए देश जहाँ अनेक, 
जीत गए थे नित एक एक । 
जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि, 
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।

15विचार ऐसे जब चित्त आते, 
विषाद पैदा करते, सताते । 
न क्या कभी देव दया करेंगे ? 
न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ? 

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