बुधवार, 4 नवंबर 2015

इसे जगाओ - भवानीप्रसाद मिश्र

भई, सूरज
ज़रा इस आदमी को जगाओ!
भई, पवन
ज़रा इस आदमी को हिलाओ!
यह आदमी जो सोया पड़ा है,
जो सच से बेखबर
सपनों में खोया पड़ा है।
भई पंछी,
इस‍के कोनों पर चिल्‍लओ!
भई सूरज! ज़रा इस आदमी को जगाओ,
वक्‍त पर जगाओ,
नहीं तो बेवक्‍त जगेगा यह
तो जो आगे निकल गए हैं
उन्‍हें पाने-
घबरा के भागेगा यह!
घबराना के भागना अलग है,
क्षिप्र गति अलग है,
क्षिप्र तो वह है
जो सही क्षण में सजग है।
सूरज, इसे जगाओ,
पवन, इसे हिलाओ,
पंछी, इसके कानों पर चिल्‍लाओ!

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