शनिवार, 28 नवंबर 2015

आगे बढ़े चलेंगे - रामनरेश त्रिपाठी

यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में
नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में ।
यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में ।
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे । 
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे ।। 

मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है ।
सरिता मुसीबतों की आग उबल रही है ।
तूफ़ान उठ रहा है, प्रलयाग्नि जल रही है ।
हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे ।
पीछे नहीं टलेंगे, आगे बढ़े चलेंगे ।।

अचरज नहीं कि साथी भग जाएँ छोड़ भय में ।
घबराएँ क्यों, खड़े हैं भगवान जो हृदय में ।
धुन ध्यान में धँसी है, विश्वास है विजय में ।
बस और चाहिए क्या, दम एकदम न लेंगे ।
जब तक पहुँच न लेंगे, आगे बढ़े चलेंगे ।।

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