जीने का हौसला है, ये और बात है
जीने का फैसला कहाँ अपने हाथ है।
खुद को तलाशने में समझ आ गई हमें
सागर में एक बूँद की कितनी बिसात है।
सूरज न निकलने से समय तो नहीं थमा
होता रहा है दिन भी, हुई रोज़ रात है।
घिरकर मुसीबतों में न डरना, ये सोचना
गम़ डाल-डाल है, तो खुशी पात-पात है।
देखें ज़रा तो हम भी कि इस राहे-वक्त़ में
मंजिल कहाँ कज़ा है, कहाँ पर हयात है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें