रविवार, 29 नवंबर 2015

जीने का हौसला है - ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

जीने का हौसला है, ये और बात है
जीने का फैसला कहाँ अपने हाथ है

खुद को तलाशने में समझ आ गई हमें
सागर में एक बूँद की कितनी बिसात है

सूरज न निकलने से समय तो नहीं थमा
होता रहा है दिन भी, हुई रोज़ रात है

घिरकर मुसीबतों में न डरना, ये सोचना
गम़ डाल-डाल है, तो खुशी पात-पात है

देखें ज़रा तो हम भी कि इस राहे-वक्त़ में
मंजिल कहाँ कज़ा है, कहाँ पर हयात है

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