रविवार, 6 दिसंबर 2015

मत ठहरो, तुम को चलना ही चलना है - श्रीकृष्ण सरल

मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है
चलने के प्रण से तुम्हें नहीं टलना है
मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

केवल गति ही जीवन विश्रान्ति पतन है,
तुम ठहरे, तो समझो ठहरा जीवन है।
जब चलने का व्रत लिया ठहरना कैसा?
अपने हित सुख की खोज, बड़ी छलना है
मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

तुम चलो, ज़माना अपने साथ चलाओ,
जो पिछड़ गए हैं आगे उन्हें बढ़ाओ
तुमको प्रतीक बनना है विश्व-प्रगति का
तुमको जन हित के साँंचे में ढलना है
मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

बाधाएँ, असफलताएँ तो आती हैं
दृढ़ निश्चय लख, वे स्वयं चली जाती हैं
जितने भी रोड़े मिलें, उन्हें ठुकराओ
पथ के कांटो को पैंरो से दलना है
मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

जो कुछ करना है, उठो ! करो! जुट जाओ !
जीवन का कोई क्षण़, मत व्यर्थ गँवाओ
कर लिया काम, भज लिया राम, यह सच है-
अवसर खोकर तो सदा हाथ मलना है
मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें