मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

कितना आसान लगता था - श्रद्धा जैन

कितना आसान लगता था 
ख़्वाब में नए रंग भरना 
आसमाँ मुट्ठी में करना 
ख़ुश्बू से आँगन सजाना 
बरसात में छत पर नहाना 
कितना आसान लगता था

दौड़ कर तितली पकड़ना
हर बात पर ज़िद में झगड़ना
झील में नए गुल खिलाना 
कश्तियों में, पार जाना 
कितना आसान लगता था 

जिंदगी में पर हक़ीक़त 
ख़्वाब सी बिलकुल नहीं है 
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है
जिंदगी में पर हक़ीक़त 
ख़्वाब सी बिलकुल नहीं है

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