सोमवार, 18 जनवरी 2016

मैं नज़र से पी रहा हूँ से सामाँ बदल न जाए - अनवर मिर्जापुरी

मैं नज़र से पी रहा हूँ से सामाँ बदल न जाए
नु झकाओ तुम निगाहों को कहीं रात ढल न जाए

मेरे अश्क भीं है इस में ये शराब उबल न जाए
मेरा जाम छूने वाले तेरा हाथ जल न जाए

अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तेरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए

मेरी ज़िंदगी के मालिक मेरे दिल पे हाथ रखना
तेरे आने की ख़ुशी में मेरा दम निकल न जाए

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