शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

मैंने जन्म नहीं मांगा था! -अटल बिहारी वाजपेयी

मैंने जन्म नहीं मांगा था, 
किन्तु मरण की मांग करुँगा। 

जाने कितनी बार जिया हूँ, 
जाने कितनी बार मरा हूँ। 
जन्म मरण के फेरे से मैं, 
इतना पहले नहीं डरा हूँ। 

अन्तहीन अंधियार ज्योति की, 
कब तक और तलाश करूँगा। 
मैंने जन्म नहीं माँगा था, 
किन्तु मरण की मांग करूँगा। 

बचपन, यौवन और बुढ़ापा, 
कुछ दशकों में ख़त्म कहानी। 
फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना, 
यह मजबूरी या मनमानी? 

पूर्व जन्म के पूर्व बसी— 
दुनिया का द्वारचार करूँगा। 
मैंने जन्म नहीं मांगा था, 
किन्तु मरण की मांग करूँगा।

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