सोमवार, 30 नवंबर 2015

लघु सरिता - गोपाल सिंह नेपाली

यह लघु सरिता का बहता जल,
कितना शीतल कितना निर्मल!
हिमगिरि के हिम से निकल निकल,
यह विमल दूध-सा हिम का जल!
रखता है तन में इतना बल,
यह लघु सरिता का बहता जल!

निर्मल जल की यह तेज धार,
करके कितनी शृंखला पार!
बहती रहती है लगातार
गिरती उठती है बार-बार!
करता है जंगल में मंगल!
यह लघु सरिता का बहता जल!

कितना कोमल कितना वत्सल,
रे जननी का यह अंतस्तल!
जिसका यह शीतल करुणा जल,
बहता रहता युग-युग अविरल!
गंगा-यमुना, सरयू निर्मल!
यह लघु सरिता का बहता जल!

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