शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

अब तो यह भी याद नहीं / कमलेश द्विवेदी

कबसे अपने बीच सहज सा हो पाया संवाद नहीं.
कब संवाद हुआ था पहले अब तो यह भी याद नहीं.

माना इक-दूजे को अब भी हम दोनों दिल से चाहें,
पर अपनी चाहत में अब क्यों पहले सा उन्माद नहीं.

जो कुछ भी महसूस किया है हमने तुमसे कह डाला,
इसमें कोई गिला-शिकवा या कोई भी फरियाद नहीं.

तुम भी जो चाहो वो कह दो हम न बुरा मानेंगे पर,
हमने हाले-दिल बतलाया छेड़ा वाद-विवाद नहीं.

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