सोमवार, 7 सितंबर 2015

कबीर दोहावली -भाग ५

बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ । 
नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ ॥ 41 ॥ 

अटकी भाल शरीर में तीर रहा है टूट । 
चुम्बक बिना निकले नहीं कोटि पटन को फ़ूट ॥ 42 ॥ 

कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय । 
ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥ 43 ॥ 

पतिवृता मैली, काली कुचल कुरूप । 
पतिवृता के रूप पर, वारो कोटि सरूप ॥ 44 ॥ 

बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार । 
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥ 45 ॥ 

हर चाले तो मानव, बेहद चले सो साध । 
हद बेहद दोनों तजे, ताको भता अगाध ॥ 46 ॥ 

राम रहे बन भीतरे गुरु की पूजा ना आस । 
रहे कबीर पाखण्ड सब, झूठे सदा निराश ॥ 47 ॥ 

जाके जिव्या बन्धन नहीं, ह्र्दय में नहीं साँच । 
वाके संग न लागिये, खाले वटिया काँच ॥ 48 ॥ 

तीरथ गये ते एक फल, सन्त मिले फल चार । 
सत्गुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार ॥ 49 ॥ 

सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन । 
प्राण तजे बिन बिछड़े, सन्त कबीर कह दीन ॥ 50 ॥ 

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