गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

दाखिला - त्रिलोक महावर

झील के किनारे 
बने स्कूल में 
एक बार फिर 
दाख़िला ले लिया है मैंने 

जूट के बस्ते में 
एक नोट बुक, और कुछ नोट्स लिए 
चल रहा हूँ कोलतार की सड़क पर 
किसी ने नहीं थाम रखी है उँगली 
न ही कोई लड़की पीछे से आकर 
मारती है धक्का 
न ही शर्माकर उठाती है 
गिरा दुपट्टा 
लेवेण्डर और ’पासपोर्ट’ की ख़ुशबू का 
अहसास ही नहीं होता है 

औचक ही आकर नहीं झगड़ती है 
प्रिंसिपल की मोटी लड़की 
चिकौटियों के दिन लद गए 
किसी भी टीचर ने डाँट नहीं पिलाई 
कोई हो हल्‍ला भी नहीं है क्लास में ।

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