गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

आमने-सामने - त्रिलोक महावर

मुर्गे ख़ुद नहीं लड़ते 
लड़ाए जाते हैं

मंड़ई में मुर्गे की टाँग में 
बाँध दी जाती है छुरी 
मैदान में आमने-सामने होते हैं मुर्गे 
आदमी होते हैं मुर्गे के पीछे 

ख़ौफ़नाक खेल शुरू होता है 
मुर्गे भिड़ जाते हैं 
एक-दूसरे से 
दोनों ओर से आदमी 
चीख़ते-चिल्लाते हैं जी भरके 
लहूलुहान मुर्गे अगल-बगल 
कुछ नहीं देखते 

मुर्गे प्रशिक्षित हैं 
जान लेने के लिए 
एक मुर्गा जीतता है 
दूसरा दम तोड़ता है 
भीड़ हो-हल्ला़ मचाती है 

जीतनेवाला आदमी 
हारे हुए मुर्गे को लाद 
चल पड़ता है 
मैदान अभी खाली नहीं हुआ 
तमाशबीनों से 

फिर मुर्गे तैयार हैं 
लड़ाए जाने के लिए

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