गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

नया सवेरा लाना तुम - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

टिक टिक करती घड़ियाँ कहतीं
मूल्य समय का पहचानो।
पल पल का उपयोग करो तुम
यह संदेश मेरा मानो ॥

जो चलते हैं सदा, निरन्तर
बाजी जीत वही पाते।
और आलसी रहते पीछे
मन मसोस कर पछताते॥

कुछ भी नहीं असम्भव जग में,
यदि मन में विश्वास अटल।
शीश झुकायेंगे पर्वत भी,
चरण धोयेगा सागर­जल॥

बहुत सो लिये अब तो जागो,
नया सवेरा लाना तुम।
फिर से समय नहीं आता है,
कभी भूल मत जाना तुम॥

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