शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

बटोही - अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

सुनो ठहरो जाते हो कहाँ।
राह अटपट है काँटों भरी।
रात आई अँधियारा हुआ।
सामने है पहाड़ की दरी।1।

चोर फिरते हैं चारों ओर।
खड़े हैं जहाँ तहाँ बटपार।
मिलेगी कुछ आगे ही गये।
पहाड़ी नदियों की खर धार।2।

क्या सकोगे सारे दुख झेल।
क्या गिनोगे काँटों को फूल।
साँसतों के झूलों पर बैठ।
क्या सकोगे उमंग से झूल।3।

जहाँ अँधियारा होगा वहाँ।
जग सकोगे क्या बन कर जोत।
क्या बलाओं को दोगे टाल।
बारहा कर बहुतेरी ब्योंत।4।

जो पहाड़ों को सको उखेड़।
काल के सिर पर जो भी चढ़ो।
बना दो जो समुद्र को बूँद।
बटोही तो तुम आगे बढ़ो।5।

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