शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो - तुलसीदास

कबहुंक हौं यहि रहनि रहौंगो।
श्री रघुनाथ-कृपाल-कृपा तैं, संत सुभाव गहौंगो।
जथालाभ संतोष सदा, काहू सों कछु न चहौंगो।
परहित निरत निरंतर, मन क्रम बचन नेम निबहौंगो।
परुष बचन अति दुसह स्रवन, सुनि तेहि पावक न दहौंगो।
बिगत मान सम सीतल मन, पर-गुन, नहिं दोष कहौंगो।
परिहरि देहजनित चिंता दुख सुख समबुद्धि सहौंगो।
तुलसिदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरिभक्ति लहौंगो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें