मंगलवार, 8 सितंबर 2015

कबीर दोहावली -भाग १३

एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गार । 
है जैसा तैसा हो रहे, रहें कबीर विचार ॥ 121 ॥ 

जो तु चाहे मुक्त को, छोड़े दे सब आस । 
मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास ॥ 122 ॥ 

साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय । 
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय ॥ 123 ॥ 

अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान । 
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान ॥ 124 ॥ 

खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह । 
आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह ॥ 125 ॥ 

लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत । 
लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत ॥ 126 ॥ 

सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह । 
लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह ॥ 127 ॥ 

भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग । 
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग ॥ 128 ॥ 

गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव । 
कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव ॥ 129 ॥ 

प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बनाय । 
चाहे घर में वास कर, चाहे बन को जाय ॥ 130 ॥ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें